Yog Ke Prakar: जब से साल में एक दिन सारा संसार योग दिवस के रूप में मनाने लगा तब से लुप्त सी होती इस इस विधि का मानों पुरर्जन्म हो गया। विज्ञान के इस दौर में जहां हर रोज़ नए अविष्कार होते रहते हैं, योग आज भी एक Mystic अद्भुत विधि है जिसको सम्पूर्ण रूप से कोई जान नहीं पाया।
हालांकि सारे विश्व में योग की क्रांति तो आई है किन्तु अभी भी इसकी जागरूकता एक आवश्यक कदम है। योग एकमात्र ऐसी विधि है जिसे अपना कर मनुष्य अपने जीवन को नया मोड़ दे सकता है। अज्ञानता उत्साह बढ़ने ही नहीं देती और सम्पूर्ण ज्ञान लेने या देने में या तो लोग दिलचस्प नहीं है या फिर ज्ञान की कमी है।
योग जिसे आजकल शारीरिक सुदृढ़ता का साधन मानने लगे हैं उसके सही अभ्यास में अनेक राज छिपे हैं। कुछ ऐसे अद्भुत अनुभव जिसे अभ्यास करने वाला ही समझ सकता है।
आज भी आधे से ज्यादा लोगों को पता नहीं है कि योग क्या है तथा क्यों इसका नियमित अभ्यास बीतते समय के साथ आवश्यक बनता जा रहा है।
इस आर्टिकल में हम योग के विभिन्न प्रकार Yog Ke Prakar के बारे में विस्तार से जानेंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि इसे पढ़ने के बाद आप अपनी दिनचर्या में से आधे घंटे योग को देकर अपना जीवन बदलने का पहला कदम उठाएंगे।
Yog Ke Prakar के पहले जानते हैं कि योग क्या है, अर्थात इसका अर्थ क्या है?
What is Yoga in Hindi
क्या आपने अपने घर का निर्माण करवाने से पहले किसी ज्ञानी पुरुष से सही समय पर भूमि पूजन करवाने की सलाह ली थी? कभी किसी व्यापार अथवा नए कार्य के लिए सही समय जानने की कोशिश की थी?
आपने कभी सुना है कि शादी से पहले दोनों कुंडलियों का योग अथवा कुछ गुणों का मिलन आवश्यक है?
हर भारतवासी इस सवाल के जवाब में हामी ही भरेगा!
तो, योग का अर्थ मिलन, जोड़ अथवा संबंध है।
कुंडली में अक्सर शुभ समय जानने के लिए ग्रहों की स्थिति को देखा जाता है। इसके पीछे भी गहरा राज़ है, ग्रहों की स्थित तथा आपके कुंडली के ग्रहों के मिलने या विपरीत होने पर शुभ अथवा अशुभ समय बनते हैं। इसलिए कोई समय किसी के लिए शुभ लेकिन दूसरे के लिए अशुभ हो सकता है।
यहां पर योग का अर्थ स्वयं से अथवा ईश्वर से संबंध जोड़ना योग है।
इस वाक्य को ज्यादा गहराई से आप आगे समझ पाएंगे इसलिए ध्यान से पढ़ते रहिए। योग के प्रकार Yog Ke Prakar जानने से पहले जानते हैं कि योगासन क्या हैं?
Yogasan Kya hai
अक्सर लोग योगासनों को ही सम्पूर्ण योग मानने की गलती कर बैठते हैं। जबकि योगासन शब्द में ही इसका असली मतलब छिपा है, योग+ आसन अर्थात योगा लगाने के लिए किए जाने वाले आसन।
यहां यह बात तो साफ़ हो गई कि योगासन सम्पूर्ण योग नहीं बल्कि योग का एक प्रकार है। उम्मीद है अब आपको योग की मेरी उपरोक्त परिभाषा ज्यादा गहराई से समझ में आ गई होगी।
चलिए अब देखते हैं कि और कितने Yog Ke Prakar प्रकार के योग होते हैं?
Types Of Yoga in Hindi/ Yog Ke Prakar in Hindi
योग के प्रकार जानने से पहले एक बात अच्छी तरह से जान लीजिए कि वाराणसी से मुंबई जाने के लिए कई तरीके हैं, जैसे कि रेलयात्रा से, हवाईजहाज से, बस से, ट्रक से अथवा अपने खुद के वाहन से। इसके साथ साथ रास्ते में अनेक हैं, कोई कम समय में पहुंचाएगा कोई ज्यादा समय लेगा।
महत्वपूर्ण यह है कि इसमें से कोई भी तरीका आप अपनाएंगे, मुंबई अवश्य पहुचेंगे, अंतर सिर्फ़ समय अथवा आरामदायक यात्रा का होगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि योग के ये सारे प्रकार, सही हैं अंतर सिर्फ़ इतना है कि किसी का लाभ तुरंत मिलता है, किसी में समय लगता है।
इसलिए अपनी सुविधानुसार विधियों को चुनना तथा उसका नियमित अभ्यास करने में समझदारी है, क्योंकि हमें तो बस लाभ होने से मतलब है।
मेरा मानना है कि योग इस सृष्टि के आरंभ से है, क्योंकि भगवान शिव हमेशा ध्यनावस्था में ही मिलते हैं। समय समय पर लोगों ने भावी पीढ़ी के लिए नए नए तरीके बनाए और पुस्तकें लिखीं।
Yog Ke Prakar प्रचलित योग शास्त्र की पुस्तकें शिव संहिता एवं गोरक्षक के अनुसार योग के चार प्रकार हैं।
१- मंत्र योग
योग की इस विधि में विशेष शब्दों का प्रयोग कर ईश्वर से स्वयं को जोड़े रखने की कोशिश की जाती है।
२- हठयोग
हठ कर स्वयं को सुनिश्चित नियमों पर चलकर ईश्वर से योग लगाना हठ योग है।
३- लययोग
शिव संहिता ने “अनहद नाद” शब्द का वर्णन है, लय योग एक ऐसी विधि है जिसमें योग अवस्था में बैठकर अपने भीतर उठ रहे नाद पर ध्यान दिया जाता है।
४- राजयोग
अपने बनाए हुए कुछ नियम आदि पर चलकर आनंदपूर्ण रहकर ईश्वर से योग लगाना राजयोग है।
पवित्र गीता, जिसमें स्वयं भगवान ने आकर जीवन का सच्चा ज्ञान दिया है, के अनुसार योग के दो प्रकार हैं। अपने अनुभव से कह सकती हूं, इन दोनों की धारणा जीवन की हर सच्चाई से अवगत कराती है।
१- ज्ञान योग
२- कर्मयोग
जैसा कि मैंने ऊपर ही लिखा है कि जीवन को सरल बनाने के लिए हमारे पुरूखों, योगियों तथा ज्ञानियों ने कई विधियों का आविष्कार किया। उपरोक्त विधियों का ही विस्तार होता चला गया और आधुनिक संसार में कई Yog Ke Prakar प्रकार प्रचलित हैं।
Yog Ke Prakar प्राचीन काल से चली आ रही मुख्य योग की विधि कुल मिलाकर छह प्रकार की हैं।
१- Yog Ke Prakar- राजयोग
जैसा कि नाम में ही लिखा है राज अर्थात राजाओं की भांति किया जाने वाला योग। जिस प्रकार एक राजा अपने अनुसार अपना जीवन जीता है उसी प्रकार से राजयोग है। राजा को अपने दायित्व तथा अधिकारों का पता होता है इसलिए इस योग के कुछ अंग हैं जो। नीचे दिए गए है।
नैतिक अनुशासन
राजा पर किसी और का शासन नहीं होता बल्कि उसके स्वयं के बनाए कुछ नैतिक नीति तथा शासन होता है जिसका पालन सिर्फ उसकी प्रजा नहीं बल्कि वह स्वयं भी करता है।
आत्म संयम
खुद पर संयम होना भी एक राजा का गुण है, यदि उसका स्वयं पर काबू नहीं रहा तो दूसरों पर उसका कोई अधिकार नहीं होगा इसलिए राजयोग स्वयं पर काबू रखना सिखाता है।
एकाग्रता
राजयोग के अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती है। जिस प्रकार एक राजा का फ़ोकस उसके अपने जीवन पर, उसके कर्तव्यों पर होता है, उसी प्रकार राजयोग मनुष्य को सही दिशा में एकाग्र करता है।
ध्यान का अभ्यास भी राजयोग का ही अंग है, क्योंकि ध्यान कोई आपको सीखा नहीं सकता जब तक आप स्वयं इच्छुक होकर आगे नहीं बढ़ते हैं। योग का सबसे महत्वपूर्ण अंग ध्यान है जो राजयोग का हिस्सा है।
सांसों पर नियंत्रण
सांसें हैं तो जीवन है किन्तु दुःख की बात है कि आजकल लोगों को इस बात को भान नहीं है। सांसों पर नियंत्रण कर ना सिर्फ जीवन का सत्व समझा जा सकता है बल्कि उम्र भी बढ़ती है।
राजयोग का एक अंग मुद्रा भी है, मुद्राओं के अभ्यास से स्वयं के साथ, ग्रह, नक्षत्रों, ब्रह्मांड तथा ईश्वर से योग लगाना राजयोग का अंग है।
संवेदी अवरोध
संवेदनाओं पर काबू पाना भी ग्रह राजयोग का हिस्सा है। गौर किया जाए तो मनुष्य की प्रत्येक प्रतिक्रिया किसी न किसी संवेदना से जुड़ी होती है, इस विधि द्वारा मनुष्य स्वयं पर विजय पाकर अपनी मर्जी का जीवन जीता है।
परमानन्द
राजयोग का एक मुख्य अंग परमानंद है, योग की वह अंतिम स्थिति जहां सिर्फ़ आनंद ही आनंद होता है।
२- Yog Ke Prakar ज्ञान योग
ज्ञान योग के माध्यम से जीवन तथा मृत्यु के नियमों को जान ने के बाद योग लगाना आसान हो जाता है। ज्ञानयोग का महत्व पवित्र गीता में भगवान ने भी बताया है। ज्ञान योग के तीन अंग, जो निम्न हैं
आत्मबोध
मैं कौन हूं, कहां से तथा क्यों आया हूं इस बात को सटीक ज्ञान सभी दुखों को जड़ से मिटा देता है फलस्वरूप योग लगाना अत्यंत आसन हो जाता है।
इन्द्रियों से साक्षात्कार
बिना इन्द्रियों के मनुष्य का जीवन निरर्थक हो जाएगा किन्तु इन्द्रियों के वशीभूत लोगों का जीवन नरक जैसा हो जाता है। इन्द्रियों से साक्षात्कार कर उस पर नियंत्रण पा लेने के बाद योग अत्यंत सरल हो जाता है।
आत्मनुभूति
जीवन के हर क्षेत्र का सत्य ज्ञान हो जाने के कारण जीवन एक खेल बन जाता है तथा योग लगाना सरल हो जाता है।
३- Yog Ke Prakar कर्मयोग
कर्मयोग, अत्यंत महत्वपूर्ण योग की विधि है। कर्म, जिसे ध्यान में रखकर बिताया गया जीवन योग की सर्वोच्च अवस्था है। किन्तु मनुष्य अपने ही कर्मों को कभी दर्पण में देख नहीं पाता है।
कर्मयोग एक ऐसी विधि है जिस पर चलकर आसानी से योग की सर्वोच्च अवस्था प्राप्त की जा सकती है।
कर्मयोग का वर्णन भी पवित्र गीता में ईश्वर ने किया है तथा कर्मों के गूढ़ नियमों के बारे में भी बताया है।
४- Yog Ke Prakar भक्तियोग
भक्तियोग सदियों से चले आ रही वह परंपरा जिसमें ईश्वर को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। भिन्न भिन्न तरीके से उनकी भक्ति करके उन्हें खुश कर उनसे संबंध स्थापित करने की कोशिश की जाती है।
भक्ति योग के भी कई तरीके हैं, जो निम्न हैं।
श्रावण
साल का एक पवित्र मास जब, उपवास करके, ईश्वर को उनकी पसंद की चीजें अर्पित कर उन्हें खुश रखने की कोशिश की जाती है।
प्रशंसा
ईश्वर के गुणों का वर्णन करना भी उसने संबंध बनाने का एक तरीका है जो भक्ति योग के अंतर्गत आता है।
स्मरण
ईश्वर को याद करने के कई तरीके जैसे कि उनके जीवन से जुड़ी कहानियां सुनना अथवा सुनाना।
सेवा
मंदिरों में ईश्वर की सेवा में जीवन बिताने वाले पंडित अथवा योगी उनकी सेवा कर उन से संबंध बनाते हैं।
पूजा
घरों में प्रतिदिन, अथवा मंदिरों में जाकर समय समय पर पूजा पाठ कर लोग ईश्वर से संबंध स्थापित करते हैं।
वन्दना
भगवान के नाम पर ना जाने कितने श्लोक तथा गीत गए जाते हैं। इस विधि से भी लोग अपनी भावनाओं को ईश्वर तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
दास्य भाव
इस विधि पर चलने वाले लोग स्वयं को ईश्वर का दस समझकर उन्हें मालिक का दर्जा देकर अपनी दास्य भाव के जरिए उनसे योग लगाते हैं।
सखा भाव
“तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो” ईश्वर के प्रेम में गया गया ये गीत सर्व संबंध उनसे दर्शाता है। सखा अर्थात मित्र भाव से लोग ईश्वर के हृदय में स्थान बनाने की कोशिश करते हैं।
आत्म निवेदन
प्रार्थना, निवेदन अर्थात स्वयं को तुच्छ समझकर ईश्वर से प्रार्थना कर भी उनसे योग लगाने की विधि भक्ति योग में मानी गई है।
५- Yog Ke Prakar हठ योग
महर्षि पतंजलि ने समाज का गहराई से अध्ययन किया और पाया कि इतनी सारी विधियां होने के बावजूद। लोग योग लगाने में असमर्थ हैं। इसलिए उन्होंने हठयोग की स्थापना की, इस विधि के अंतर्गत जिद पूर्वक स्वयं को योग की अवस्था में लाना है। उन्होंने निम्न विधियों को हठयोग का हिस्सा बनाया।
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्यहार
- धारण
- ध्यान
- समाधि
६- Yog Ke Prakar तंत्र योग
तंत्र योग भी प्राचीन समय से चला आ रहा योग का प्रकार है। दुर्भाग्यवश आधुनिक पाश्चात्य जगत में इस विधि को गलत तरीके से लिया गया है।
तंत्र का शाब्दिक अर्थ तकनीक होती है इस प्रकार तांत्रिक क्रियाएं स्वयं को शुद्ध तथा समझने की विधि है। इस प्रकार तंत्र योग भी योग का एक महत्वपूर्ण विधि है।
Yog Ke Prakar- अतिरिक्त योग के प्रकार
उपरोक्त छह योग के प्राचीन विधियों समय के साथ ज्ञानियों ने अनेक छोटे छोटे विधियों को अपनाकर प्रयोग किया। नीचे कुछ विधियां हैं जो आजकल लोगों में प्रचलित हैं।
७- Yog Ke Prakar लय योग
९- मनोयोग
१०- Yog Ke Prakar अष्टांग योग
११- आयंगर योग
१२- Yog Ke Prakar पॉवर योग
१३- आनंद योग
१४- Yog Ke Prakar संपूर्ण योग
१४- शिवानंद योग
१६- Yog Ke Prakar भक्ति योग
१७- बिक्रम योग
Final Words: इस प्रकार आज के समय में यदि शोध किया जाए तो कुछ मिलाकर १७ Yog Ke Prakar योग के प्रकार हैं जिन का अभ्यास पूरे संसार में किया का रहा है ।
आप किस Yog Ke Prakar का अभ्यास करते हैं तथा आपका क्या अनुभव रहा है, कॉमेंट करके हमें ज़रूर बताइए।
भवतु सबै मंगलम!
2 thoughts on “Yog Ke Prakar: विश्व भर में प्रचलित योग के कुल 17 प्रकार”