Plavini Pranayama in Hindi- प्लाविनी प्राणायाम एक तरह का योग भी है और प्राणायाम भी। इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कोई भी व्यक्ति पानी में कमल के पत्तों की तरह तैर सकता है। इसी वजह से इसका नाम प्लाविनी रखा गया है। इस प्राणायाम को करने के लिए काफी ज्यादा अभ्यास और अनुभव की आवश्यकता होती है। हर कोई इसे नहीं कर सकता है।
सामान्य तौर पर सिद्ध योगी ही इस प्राणायाम को करते हैं। प्लाविनी प्राणायाम का अभ्यास सुखासन या सिद्धासन में बैठकर ही करने की सलाह दी जाती है। इसके निरंतर अभ्यास से अपनी इच्छानुसार सांस को रोक कर रखा जाता है, जिसकी वजह से इसे प्लाविनी या फिर केवली प्राणायाम भी कहा जाता है।
वैसे इसे योग ना कहकर पूरी तरह से प्राणायाम कहना ही शायद उचित होगा, क्योंकि इसके अभ्यास से हम अपने शरीर के जीवन शक्ति को नियंत्रित करते हुए उसे हल्का कर सकते हैं। बहुत से लोगों के मन में योग और प्राणायाम को लेकर कन्फ्यूजन रहता है, कि दोनों के बीच में आखिर अंतर क्या होता है? तो आइए जानते हैं योग और प्राणायाम के बीच के अंतर को।
What is Yoga in Hindi | योग (आसन) क्या है?
योग को ही आसन भी कहा जाता है। ये मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विषयों या प्रथाओं के लिए एक सामान्य शब्द है, प्राचीन भारत में जिसकी उत्पत्ति का मुख्य उद्देश्य स्थायी शांति प्राप्त करना था। आज के समय में ये काफी ज्यादा विस्तृत हो गया है।
दुनियाभर के ज्यादातर हिस्सों के लोग योग को महत्व देने लगे हैं और खुद को स्वस्थ रखने के लिए इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने लगे हैं। योग में यौगिक व्यायाम शामिल होते हैं, जिसका संबंध शरीर के सभी भागों से रहता है।
शरीर के बाहरी, आंतरिक और मानसिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए ये काफी प्राचीन और प्रभावशाली तरीका है। नियमित तौर पर व्यायाम करने से शरीर को ताजगी मिलती है, जिससे शरीर को सही तरीके से ढालने और नियंत्रित करने में मदद मिलती है। योग हमारे मन, शरीर, आत्मा और ब्रह्मांड को एकजुट करता है। योग के इतिहास की बात करें तो, ये करीब 5000 साल पुराना है।
What is Pranayama in Hindi | प्राणायाम क्या है?
योग के आठ अंगों में से एक होता है प्राणायाम। अष्टांग योग में 8 प्रक्रियाएं होती हैं, जिनमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि हैं। ये दो शब्दों प्राण और आयाम से मिलकर बना है।
मोटे तौर पर प्राणायाम को सांस लेने के योग के तौर पर जाना जाता है। प्राणायाम का अर्थ होता है सांस या जीवन शक्ति का विस्तार या प्राण का विस्तार। भारत के यौगिक वंशावलियों में इसकी उत्पत्ति हुई थी।
प्राणायाम एकाग्रता की आध्यात्मिक और दिव्य पद्धति है, जिसमें सांस को लेने और छोड़ने की प्रक्रिया शामिल होती है। प्राणायाम के दो रूप होते हैं, जिनमें पहला होता है हठ योग और दूसरा होता है राज योग।
ज्यादातर प्राणायाम का अभ्यास शांत और स्थिर वातावरण में ही किया जाता है। प्राणायाम के दौरान ध्यान को किसी एक चीज पर केंद्रित किया जाता है। मन को नियंत्रण में लाने के लिए प्राणायाम सबसे सही और कुशल तरीका माना जाता है। इसकी मदद से आंतरिक स्थिरता प्राप्त कर लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
नियमित तौर पर प्राणायाम करने से अनेकों तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे इससे अवसाद का इलाज हो सकता है, प्राण शक्ति को बढ़ाता है, रुकी हुई नाड़ी को खोलने में मददगार होता है, मन, शरीर और आत्मा में तालमेल बनता है, हकलाने जैसी समस्या से निजात दिलाने में भी मददगार साबित हो सकता है। इन सबसे अलावे भी इसके कई और भी फायदे होते हैं।
Difference Between Yoga and Pranayama | योग और प्राणायाम में अंतर
दोनों का ही उपयोग शरीर को शारीरिक और मानसिक रूप से आराम पहुंचाने के लिए बनाया गया है। योग शरीर के लिए किया जाता है, तो प्राणायाम सांस के लिए किया जाता है।
योगासन शारीरिक रूप से हमें प्राणायाम करने के लिए तैयार करता है, तो प्राणायाम मानसिक रूप से हमें योग करने के लिए तैयार करता है।
What is Plavini Pranayama in Hindi | प्लाविनी प्राणायाम क्या है?
संस्कृत का एक शब्द है प्लावन, जिसका हिंदी में अर्थ होता है तैरना। कमल के फूल के पत्ते को आपने जिस तरह से पानी पर तैरता हुआ देखा होगा, ठीक उसी तरह इस प्राणायाम को नियमित तौर पर करने वाला व्यक्ति भी खुद को हल्का बना सकता है, ताकि वो पानी पर बिना किसी परेशानी के तैर सके। प्लाविनी प्राणायाम एक प्रकार की श्वास क्रिया है।
यानी कि ये भी एक तरह का व्यायाम है, जिसे हर कोई कर सकता है. हालांकि शुरुआत में इस प्राणायाम को विशेषज्ञ की देखरेख में ही करने की आवश्यकता होती है, लेकिन धीरे-धीरे इसका अभ्यास करने से जब आप इसे करने में सहज महसूस करने लगते हैं, तो खुद भी कर सकते हैं।
इस प्राणायाम को करने के लिए नासिका के सहारे श्वास को अंदर की ओर लिया जाता है और बाहर की ओर छोड़ा जाता है। हालांकि इसका पूरा परिणाम पाने के लिए बहुत ज्यादा अभ्यास की आवश्यकता होती है।
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प्लाविनी प्राणायाम कैसे किया जाता है?
शुरुआत में फेफड़ों की सांस रोकने का क्षमता को बढ़ाने के लिए लोगों को ध्यान की मुद्रा में बैठकर प्लाविनी प्राणायाम को करने की सलाह दी जाती है। इसी तरह बार-बार अभ्यास करने से व्यक्ति में परिपक्वता आने लग जाती है और धीरे-धीरे वो आसानी से इस प्राणायाम को करने में सक्षम हो जाते हैं।
1- प्लाविनी प्राणायाम के साथ सुखासन, वज्रासन, पद्मासन और सिद्धासन जैसे ध्यानस्थ आसन किए जाते हैं। शवासन करते समय इस प्राणायाम का सबसे अच्छा लाभ उठाया जा सकता है।
2- अगर आप इस प्राणायाम को करने की शुरुआत करना चाहते हैं और इसे करने में महारत हासिल करना चाहते हैं, तो हम उसके लिए आपको विस्तार में बता रहे हैं कि किन चरणों में किस तरह से आपको ये प्राणायाम करना चाहिए।
3- सबसे पहले पद्मासन, सिद्धासन या फिर वज्रासन किसी भी योग भाव में बैठ जाएं और ध्यान को केंद्रित करने का प्रयास करें। दिल और दिमाग से हर तरह की सोच को त्याग कर अपनी चेतना को शांत रखने की कोशिश करें।
4- एक बात का खास ध्यान रखें कि आप जिस किसी भी आसन में बैठे हों, अपनी गर्दन, रीढ़ की हड्डी और सिर को पूरी तरह से सीधा रखें। मतलब कि आप जिस किसी भी आसन की मुद्रा में बैठें, तो आपका शरीर पूरी तरह से सीधा होना चाहिए।
5- शरीर को सीधा रखने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि उसे तानव दें। शरीर को ना तो ज्यादा ढीला रखें और ना ही ज्यादा तनाव दें। अब अपनी नाक से सांस को फेफड़े के जरिये पेट में भरे और छोड़ें।
6- इसका मतलब ये है कि शुरुआत में आपको अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करना है। जब आप अपने सांस पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हो जाएं तब आगे के चरण की ओर बढ़ें।
7- सबसे पहले लंबी सांस लें और सांस को रोकने की कोशिश करें। इस दौरान आप अपने फेफड़ों और हृदय पर ज्यादा दबाव बिल्कुल भी न डालें।
8- सांस को फेफड़ों और पेट में भरने के बाद गर्दन को नमस्कार की मुद्रा में झुकाएं। ऐसा करने से आप सांस को रोकने में सहज महसूस करेंगे।
9- नमस्कार की मुद्रा में सर को उतना ही झुकाना है जितना भगवान को प्रणाम करने के दौरान सर को झुकाते हैं। इसे जालंधर बंध के नाम से जाना जाता है।
10- अब जब सांस छोड़ना हो, तो पहले धीरे-धीरे गर्दन को सीधा करें और सांस छोड़ते जाएं। एक बात ध्यान में रखें कि आप जितनी देर तक सांस को सहजता से रोक कर रख पाएं उतने देर तक ही रोके रखें। जबरदस्ती ज्यादा देर तक रोकने की कोशिश ना करें। बार-बार इसका अभ्यास करते रहने से आपके सांस रोकने की क्षमता बढ़ती जाएगी।
11- इस प्राणायाम को नियमित तौर पर करते रहने से आपके शरीर का आकार धीरे-धीरे सही होने लगेगा। और चुकी बार-बार पेट के अंग फूलते और सिकुड़ते हैं, तो इससे वो भी सही आकार में आने लग जाएंगे।
12- रोजाना इस प्रक्रिया को आप 4-5 बार दोहरा सकते हैं।
Benefits of Plavini Pranayama in Hindi प्लाविनी प्राणायाम से होने वाले लाभ
इस प्राणायाम को नियमित तौर पर करने से कब्ज से पीड़ित व्यक्ति को काफी लाभ मिलता है।
1- प्लाविनी प्राणायाम करने से अग्नि प्रदीप्त तेज होता है, जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनता है।
2- ध्यान करने की शक्ति बढ़ती है और याददाश्त मजबूत होता है।
3- नियमित रूप से इस प्राणायाम को करने से प्राणशक्ति शुद्ध होती है, जिससे उम्र बढ़ती है।
4- दिमाग के स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है।
5- तनाव को कम कर मन को शांत करने में ये प्राणायाम काफी ज्यादा लाभदायक होता है।
6- अगर आप तैराकी में महारत हासिल करना चाहते हैं, तो नियमित तौर पर इस प्राणायाम को करने से काफी लाभ मिल सकता है।
7- ये मन को शांत व स्थिर रखने में मददगार होता है।
8- क्रोध और चिंता को दूर करने में काफी लाभदायक होता है।
प्लाविनी प्राणायाम करने से पहले इन सावधानियों को बरतें
1- किसी विशेषज्ञ की निगरानी में ही इस प्राणायाम को करने की सलाह दी जाती है।
2- प्लाविनी प्राणायाम को खाली पेट ही करना चाहिए। भोजन करने के कम से कम 5-6 घंटे बाद ही इसे करने की सलाह दी जाती है।
3- छाती या पेट में अगर दर्द की शिकायत हो तो इस प्राणायाम को बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
4- लीवर से संबंधित परेशानी में भी प्लाविनी प्राणायाम को नहीं करना चाहिए।
5- इस प्राणायाम को करने के लिए आवश्यक है कि मन शांत रहे।
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प्राणायाम किस जगह पर करना चाहिए?
1- प्राणायाम करने के लिए उस जगह का चुनाव करें, जहां पर पर्याप्त हवा और प्रकाश हो।
2- प्राणायाम करने के लिए ताजी हवा काफी ज्यादा आवश्यक होती है।
3- अगर किसी कमरे में प्राणायाम करने के बारे में आप सोच रहे हैं, तो ध्यान रखें कि आपके कमरे की खिड़की खुली रहे। नहीं तो प्राणायाम करने के दौरान चक्कर आने की संभावना रह सकती है।
4- जहां आप प्राणायाम करें वहां ज्यादा शोर शराबा ना हो, ताकि आप अपने अभ्यास पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
5- प्राणायाम करने के दौरान अपनी मानसिक स्थिति को पूरी तरह शांत और रिलैक्स रखें।