Buddha Purnima in Hindi | Gautam Buddha Birth | Gautam Buddha Teachings | Gautam Buddha Childhood | Buddha Purnima 2022
वैशाख महीने की पूर्णिमा को हर साल बुद्ध पूर्णिमा के तौर पर भगवान गौतम बुद्ध की याद में धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार भगवान गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसी वजह से बौद्ध और हिंदू दोनों धर्म के अनुयायी इस दिन को Buddha Purnima त्योहार की तरह मनाते हैं।
आइए जानते हैं कि बुद्ध जयंती कब मनाई जाती है?
इतिहासकारों के अनुसार गौतम बुद्ध का जीवनकाल 563-483 ई.पू. के बीच माना जाता है। ज्यादातर लोग बुद्ध के जन्म स्थान के तौर पर नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान को जानते हैं।
भगवान गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुई थी।
चलिये जानते हैं Buddha Purnima और गौतम बुद्ध के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व – Importnace of Buddha Purnima In Hindi
वैशाख महीने की पूर्णिमा को वैशाखी पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, बुद्ध जयंती या पीपल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में वैशाख पूर्णिमा को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है।
आज के दिन को दुनिया भर में मौजूद बौद्ध धर्म के अनुयायी प्रकाश उत्सव के तौर पर धूमधाम से मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और चंद्र देव की पूजा का भी काफी ज्यादा महत्व होता है।
आइए जानते हैं कि Buddha Purnima कैसे मनाई जाती है अर्थात् How is Buddha Purnima Celebrated?
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बुद्ध पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है?
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करके लोग पुण्य कर्म का फल प्राप्त करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी काफी ज्यादा महत्व बताया जाता है।
मान्यता है कि इस शुभ अवसर पर विधिवत पूजा-पाठ करने से भगवान गौतम बुद्ध के साथ-साथ भगवान विष्णु और चंद्र देव की कृपा भी प्राप्त होती है, जिससे भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
Buddha Purnima के दिन अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाज और संस्कृति के अनुसार इस दिन को काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। तो वहीं दुनिया भर से भारी संख्या में बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन भारत देश के बिहार राज्य स्थित बोधगया में प्रार्थना करने आते हैं, क्योंकि भगवान बुद्ध ने इसी स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति की थी।
ऐसे में बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर बोधिवृक्ष की खास पूजा-अर्चना की जाती है। वृक्ष की शाखाओं को रंगीन पता खाएं व हार से सजाया जाता है। वृक्ष की जड़ में सुगंधित पानी व दूध अर्पित किया जाता है और वृक्ष के चारों ओर दीपक जलाकर गौतम बुद्ध की आराधना की जाती है।
इन सबके अलावा Buddha Purnima के दिन धार्मिक स्थलों और मंदिरों पर सूर्योदय के बाद बौद्ध झंडा फहराने की परंपरा है। ये झंडा नारंगी, पीला, सफेद, लाल और नीले रंग का होता है।
नारंगी रंग बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है, तो पीले रंग को कठिन स्थितियों से बचने के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है, जबकि सफेद रंग शुद्धता का और लाल रंग आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
आइए जानते हैं कि बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? अर्थात Why Buddha Purnima is Celebrated?
बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
Buddha Purnima का संबंध ना सिर्फ गौतम बुद्ध के जन्म से है, बल्कि यही वो दिन है जब कई साल वन में भटकने और घोर तपस्या करने के पश्चात बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान को दुनियाभर में फैलाया और 80 वर्ष की उम्र में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ।
कुल मिलाकर कहें तो वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ, इसी दिन उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और इसी दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ। इसलिए वैशाख पूर्णिमा के दिन को बुद्ध पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है।
भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्य
भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में चार काफी महत्वपूर्ण सूत्र दिए, जो ‘चार आर्य सत्य’ के नाम से जाने गए। उनमें से पहला आर्य सत्य है दु:ख। दूसरा है दुःख का कारण। तीसरा है दुःख का निदान और चौथा वो है जिससे दुःख की समाप्ति होती है।
वहीं गौतम बुद्ध ने जो अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया था, उनमें चौथा मार्ग वो है जो दुख के निदान का मार्ग बताता है। भगवान गौतम बुद्ध ने इंसान के ज्यादातर दुखों का कारण उसके खुद की मिथ्या दृष्टि और अज्ञान को बताया है।
Buddha Purnima in Hindi – गौतम बुद्ध की शिक्षाएं
भगवान गौतम बुद्ध ने मनुष्य को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया है। बुद्ध ने दुख, उसके कारण और निवारण के लिए लोगों को अष्टांगिक मार्ग दिखाया।
वो यज्ञ और पशु-बलि की निंदा करते थे और अहिंसा पर जोर देते थे। उनका कहना था कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के अष्टांग मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
सम्यक दृष्टि: यानी हमें चार आर्य सत्यों में विश्वास करना चाहिए
सम्यक संकल्प: यानी मानसिक और नैतिक तौर पर प्रतिज्ञा कर लें कि हमें आर्य मार्ग पर चलना है।
सम्यक वाक: जीवन में वाणी की सत्यता और पवित्रता को बनाए रखना। क्योंकि अगर ये नहीं होगा तो जीवन में दुख आने में वक्त नहीं लगेगा।
सम्यक कर्मात: कर्म चक्र से छुटकारा पाने के लिए आचरण का शुद्ध होना आवश्यक है।
सम्यक आजीव: न्यायपूर्ण जीवन जीना आवश्यक है। क्योंकि दूसरों का हक मारकर या किसी गलत तरीके से जुटाए गए साधन का परिणाम भी गलत होता है।
सम्यक व्यायाम: जीवन में अच्छा कर्म करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए।
सम्यक स्मृति: चित में एकाग्रता के भाव के लिए मानसिक तथा शारीरिक सुख की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखना चाहिए।
सम्यक समाधि: निर्वाण की प्राप्ति
Buddha Purnima in Hindi – गौतम बुद्ध का बचपन
भगवान गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी वन में ईसा से 563 साल पहले हुआ था। दरअसल उनकी माता महामाया उनके जन्म के लिए ही अपने नैहर जा रही थीं, कि रास्ते में प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, जिसकी वजह से लुम्बिनी वन में ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।
जन्म के सात दिन के बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था, जिसके बाद उनकी मौसी गौतमी ने उन्हें पाला पोसा। उनके पिता शाक्यों के राजा शुद्धोधन थे। इसलिए गौतम बुद्ध शाक्य मुनि के नाम से भी जाने जाते हैं। गौतम बुद्ध के बचपन का सिद्धार्थ था।
उन्होंने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद की शिक्षा तो ली ही, साथ ही उन्होंने राजकाज और युद्ध विद्या में भी महारथ हासिल की। तीर-कमान, कुश्ती, घुड़दौड़ और रथ हांकने में उन्हें कोई नहीं हरा पाता।
बचपन से ही सिद्धार्थ के मन में दया और करुणा भरी हुई थी। वो किसी भी प्राणी को दुख में नहीं देख पाते थे। इस बात का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि घुड़दौड़ में जब घोड़ा दौड़ता तो अगर घोड़े के मुंह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ को लगता कि घोड़ा थक गया है।
इसलिए वो उसे वहीं पर रोक देते और जीत रहे बाजी को भी हार जाते थे। यहां तक कि वो जानबूझकर भी खेल में हार जाया करते थे, क्योंकि उनसे दूसरों की हार और दूसरों का दुख देखा नहीं जाता था।
Buddha Purnima in Hindi- गौतम बुद्ध का स्वभाव
इसके अलावा हंस का किस्सा तो काफी प्रचलित है ही, कि जब एक हंस किसी के बाण से घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा था, तो सिद्धार्थ ने उसके शरीर से तीर को निकाला और उसे अपने हाथों से सहलाया।
उसे पानी पिलाया और उसके घाव का उपचार भी किया। दरअसल उस हंस को सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त ने तीर मारा था। ऐसे में जब देवदत्त उनसे हंस मांगने लगा तो उन्होंने देने से ये कहकर मना कर दिया कि मारने वाले से बचाने वाला ज्यादा बड़ा होता है और इसलिए उसपर बचाने वाले का ही हक होना चाहिए।
तब देवदत्त ने सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन के पास इसकी शिकायत भी की लेकिन सिद्धार्थ के तथ्य सबको ज्यादा सही लगे इसलिए उस हंस पर आखिर में सिद्धार्थ का ही हक हुआ। जब सिद्धार्थ 16 साल के हुए तो उनका विवाह दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा से हुआ।
सिद्धार्थ के पिता ने उनके ऐशो-आराम के सारे प्रबंध महल में करवा रखे थे। सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास की सारी वस्तुएं महल में मौजूद थी। लेकिन ये सांसारिक भोग-विलास की चीजें उन्हें बांधकर नहीं रख सकी।
सिद्धार्थ कैसे बने महात्मा बुद्ध?
एक दिन की बात है, जब राजकुमार सिद्धार्थ महल के बाहर अपने रथ से घूमने निकले थे। तभी उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं। सफेद कपड़े में लिपटे उस मुर्दे को डोरियों से बांध दिया गया था।
जो उसके साथ थे उनमें से कुछ लोग बहुत रो रहे थे। कई महिलाओं का रो-रो कर बुरा हाल था। ये दृश्य देखकर सिद्धार्थ को समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। कब उन्होंने अपने सारथी से इसके बारे में पूछा कि आखिर ये क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है?
तब उनके सारथी ने उन्हें बताया कि, सफेद कपड़े में लपेटकर जिसे रस्सी से बांधा गया है उसकी मृत्यु हो गई है और जो रो रहे हैं उनके परिजन हैं। इसे श्मशान ले जाया जा रहा है, जहां पर इसे जलाकर इसका दाह संस्कार किया जाएगा।
मृत्यु की बात सुनकर सिद्धार्थ बहुत दुखी हो गए और फिर उन्होंने सारथी से पूछा कि, आखिर इसकी मृत्यु क्यों गई? इसके जवाब में सारथी ने कहा कि, “एक न एक दिन तो हर किसी की मृत्यु होनी ही है। आज तक मौत से कोई नहीं बच सका है।” ये सुनकर सिद्धार्थ ने सारथी से कहा कि रथ को वापस महल में ले चले।
दरअसल इससे पहले भी किसी न किसी कारण से जब सिद्धार्थ महल से बाहर जाते तो वो जल्द ही वापस लौट आते थे। आज भी वही हुआ। ऐसे में रथ के सारथी से राजा शुद्धोधन ने आज फिर जल्दी वापस लौटने का कारण पूछा तो उसने राजा को सारी बात बता दी। अब राजा ने महल के आस पास और भी ज्यादा पहरा बढ़ा दिया।
History Behind Buddha Purnima in Hindi
फिर कुछ दिनों के बाद सिद्धार्थ अपने बगीचे में घूम रहे थे, तो वहां उन्होंने एक संन्यासी को देखा। उन्होंने देखा कि उसने गेरुआ वस्त्र पहन रखा था और उसके चेहरे पर काफी तेज था। वो दुनिया दारी की चिंताओं से मुक्त आनंद में मग्न लग रहा था।
ये देख कर सिद्धार्थ ने अपने एक सैनिक से पूछा कि वो कौन है? तब उस सैनिक ने राजकुमार से कहा कि वो एक संन्यासी है। ईश्वर से नाता जोड़ने के लिए उसने सबसे अपना नाता तोड़ लिया है।
उस दिन पहली बार सिद्धार्थ काफी देर तक घूमे और जब महल लौटकर आए तो उनके दिमाग में यही चल रहा था कि आखिर बीमारी, बुढ़ापा और मौत जैसी चीजों से छुटकारा किस तरह से मिल सकता है? खुद को दुख से बचाने का उपाय क्या है?
मैं ऐसा क्या करूं कि जीवन के दुख से मुक्ति मिल जाए? क्यों न मैं भी उस आनंदमय संन्यासी की तरह ही बन जाऊं? इन्हीं दिनों की बात है जब सिद्धार्थ की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस बात की खबर जब सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन को लगी कि वो दादाजी बन गए हैं, तो उन्होंने खूब दान-पुण्य किया और बच्चे का नाम राहुल रखा।
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जब सिद्धार्थ को हुआ वैराग्य
पुत्र के जन्म के कुछ दिनों बाद एक रात को जब सब सो रहे थे, तब सिद्धार्थ उठ गए और द्वार पर चले गए। उन्होंने पहरेदार से पूछा कि तुम कौन हो? तब पहरेदार ने अपना परिचय देते हुए कहा कि, “मैं छंदक हूं” तब राजकुमार ने उसे आज्ञा दी कि, जाओ जाकर एक घोड़े को तैयार करके लाओ।
उस छंदक ने राजकुमार की आज्ञा का पालन किया और एक सफेद घोड़े को तैयार करके ले आया। तब राजकुमार ने सोचा कि यहां से जाने से पहले एक बार बेटे का मुंह देख लेता हूं। ये सोचकर वो अंदर गए और यशोधरा के पलंग के पास खड़े हो गए। लेकिन यशोधरा बच्चे को लेकर सोई हुई था।
तब सिद्धार्थ ने सोचा कि अगर यशोधरा के हाथ उठाकर बच्चे को देखने का प्रयास करता हूं तो संभव है कि वो जाग जाएगी। इसलिए उन्होंने बच्चे को देखे बिना ही जाने का निर्णय लिया। उन्होंने सोचा कि जब ज्ञान प्राप्त करके आऊंगा तब देख लूंगा।
सिद्धार्थ बाहर आए और घोड़े पर सवार हो गए। उनके साथ दूसरे घोड़े पर छंदक भी सवार होकर पीछे-पीछे चल दिया। वो कुछ ही देर में अपने नगर से बाहर निकल गए और रातों रात ही वो अपने मामा की राजधानी को भी लांघ गए।
अब रामग्राम को पीछे छोड़कर वो ‘यमुना’ नदी के तट पर पहुंचे। नदी को पार करने के बाद उन्होंने धंदक से कहा कि, “छंदक अब तुम मेरे इन गहनों और घोड़े को लेकर वापस लौट जाओ। क्योंकि मैं तो संन्यासी बनने जा रहा हूं।”
इस पर छंदक ने उनसे कहा कि, “मुझे भी अपने साथ ले चलें। मैं भी आपके साथ संन्यासी बन जाऊंगा।” लेकिन सिद्धार्थ ने उसे समझा कर वापस महल भेज दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी तलवार से अपने लंबे बालों को काट दिया। संन्यासी का वेश धारण करने के बाद वो राजगृह गए और भिक्षा मांगने के लिए नगर में चल पड़े।
जब उस नगर के राजा को इस बात की खबर लगी कि एक सुंदर युवक सन्यासी के वेश में उनके नगर में आया है, तो वो खुद उस संन्यासी के पास गए और मनचाही वस्तुएं मांगने को कहा। तब संन्यासी बने सिद्धार्थ ने कहा कि, “महाराज, मुझे किसी चीज की कोई इच्छा नहीं है। मेरे महल में सारी सुविधाएं मौजूद थी। लेकिन मैं तो परम ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपना महल भी छोड़ आया हूं।”
संन्यासी की इस बात को सुनकर राजा ने उनसे कहा कि, “आपके निश्चय को देख कर मैं कह सकता हूं आप अपने लक्ष्य में जरूर सफल होंगे। मेरी आपसे बस एक प्रार्थना है कि जब आपको ज्ञान की प्राप्ति हो जाए तो सबसे पहले आप हमारे राज्य में आएं।”
अब सिद्धार्थ संन्यासी बनकर इधर-उधर भटकने लगे। फिर वो उरुबेल गए और वहां पर उन्होंने कठिन तपस्या की। इन्हीं दिनों उनके साथ कौंडिन्य आदि पांच और लोग भी भिक्षु बनकर उरुबेल में रहने लगे।
कठिन तपस्या करने के दौरान उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया, जिसकी वजह से उनका शरीर काला पड़ गया। अब इनमें महापुरुषों जैसे कोई भी लक्षण नजर नहीं आ रहे थे। यहां तक कि एक दिन तो उन्हें जोर से चक्कर आ गया और वो गिर गए।
ऐसे में उन्होंने सोचा कि शरीर को सुखाने से मुझे क्या प्राप्त हुआ? इसलिए उन्होंने फिर से भिक्षा मांगने की शुरुआत कर दी। ये देखकर उनके साथ जो पांच लोग और जुड़े थे, उन्हें लगा कि अब तो इनकी तपस्या भंग हो गई। अब तो इन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। ये सोचकर वो पांचों सिद्धार्थ को छोड़कर चले गए।
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Gautam Buddha Gyan Prapti – Buddha Purnima History
एक बार बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ भिक्षु संन्यासी के वेश में बैठे थे। तब सुजाता नाम की एस स्त्री उनके लिए खीर बनाकर लाई। जब उन्होंने खीर खाया तो उन्हें शरीर में काफी ताकत महसूस हुई।
इसके कुछ समय पश्चात उन्होंने उसी बोधी वृक्ष के नीचे घोर तपस्या करने की शुरुआत की। लगातार छह वर्ष तक तपस्या करने के बाद उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद वो ‘बुद्ध’ कहलाए। बुद्ध उसे कहा जाता है, जिसे बोध अर्थात ज्ञान की प्राप्ति हो गई हो। जिनकी सारी इच्छाएं खत्म हो गई हों।
अब जबकि उन्होंने बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया तो उन्होंने इस ज्ञान को लोगों में बांटने का विचार किया। उन्होंने सोचा कि जो पांच साथी उन्हें छोड़कर गए पहले वो उन्हीं को उपदेश देंगे। दरअसल उन पांचों ने तपस्या के दिनों में उनकी बहुत सेवा की थी।
ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब गौतम बुद्ध अपने घर लौटे तो उनकी पत्नी यशोधरा ने उनसे पूछा कि, “जिस ज्ञान की प्राप्ति के लिए आपने गृह त्याग किया, क्या उस ज्ञान की प्राप्ति घर में रहकर नहीं की जा सकती थी?”
इस सवाल ने बुद्ध को सोचने पर मजबूर कर दिया और फिर उन्होंने इस बात को माना कि हां ज्ञान की प्राप्ति तो घर में रहकर भी प्राप्त की जा सकती थी। इसके बाद पत्नी और बच्चे से वर्षों दूर रहने के लिए उन्होंने दोनों से माफी भी मांगी। उन्होंने ये भी माना कि ये भी एक प्रकार की हिंसा थी।
Final Words: उम्मीद है भगवान बुद्ध और Buddha Purnima के बारे में जानने के बाद, उनके विचारों को समझने के बाद उनकी शिक्षाओं पर अमल करना सरल हो जाएगा।
गौतम बुद्ध की शिक्षाएं सत्य मार्ग पर चलकर सफ़लता एवम संतुष्टि पाने में मदद करती हैं।
यदि यह आर्टिकल आपको ज्ञानवर्धन लगा हो एवं आपके सभी सवालों के जवाब मिले हों तो दूसरों के साथ अवश्य साझा करें। अच्छी बातें दूसरों के साथ बाटने से बढ़ती हैं।
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सबका मंगल हो
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