Bahya Pranayama in Hindi विज्ञान की महत्वपूर्ण शोध, दर्द निवारक दवाइयां, यदि अपने सिर दर्द से मुक्त होने के लिए खाई है तो भी शरीर के अन्य दर्द भी मिटा देती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसका काम है कि शरीर में जिस भी बदलाव के कारण दर्द हो रहा है, उसे ठीक करे।
क्या आपको पता है, कि यदि अपने सांसों के साथ लिए गए प्रयोग, जिसे हम प्राणायम कहते हैं उसके कितने फ़ायदे हैं? सच कहूं तो सांसें, जो जीवन की सबसे पहली ज़रूरत है, उसके साथ किए गए प्रयोग जीवन की सम्पूर्ण समस्याएं दूर कर सकती हैं।
प्राचीन ऋषि मुनियों के आशीर्वाद से सांसों का जो अभ्यास, प्रणायाम, हम करते हैं उसके कई अदृश्य एवं अद्भुत लाभ भी हैं। ऐसे लाभ जिनका अनुभव सिर्फ़ नियमित प्राणायम का अभ्यास करने वाला ही समझ सकता है।
अक्सर प्राणायाम के कुछ प्रसिद्ध विधियां जैसे सांसों के आवागम पर ध्यान, अनुलोम विलोम इत्यादि ही अभ्यास में लाई जाती हैं। इन विधियों के अभ्यास से अनेक अंदरूनी परिवर्तन कुछ ही दिनों में सामने आने लगते हैं।
बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama एक ऐसे विधि है जिससे शरीर के बाहर की व्यवस्था में भी परिवर्तन किया जा सकता है। आइए, इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति अपने चारों तरफ़ एक औरा लिए फिरता है, जो उसके विचारों तथा भावनाओं की ऊर्जा से बनती है। अक्सर हम बाहरी तत्वों को निष्काशित करते हैं जिससे हमारा औरा भी साफ़ होता है, किन्तु सोचिए यदि जानबूझकर औरा साफ़ किया जाए तो कैसा होगा?
बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama इसी औरा को स्वच्छ कर अपने आस पास एक मजबूत एवं स्वच्छ घेरा, औरा, तैयार करना है।
Mystic Mind के इस आर्टिकल में हम आज बाह्य प्राणायम करने की विधि, इससे होने वाले लाभ एवं अभ्यास पूर्व अथवा अभ्यास के दौरान ध्यान रखने वाली सावधानियों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
प्राणायाम की इस अद्भुत से होने वाले लाभ एवं सावधानियों को जानने से पहले जानते हैं कि बाह्य प्राणायम क्या है?
What is Bahya Pranayama in Hindi बाह्य प्राणायाम क्या है?
बाह्य प्राणायाम मूलतः संस्कृत के दो शब्द बाह्य एवं प्राणायाम से मिलकर बना है। जिसके शाब्दिक अर्थ है बाह्य अर्थात बाहर एवं प्राणायाम का अर्थात है प्राण शक्ति, सांसों पर ध्यान देना।
इस प्रकार बाह्य प्राणायाम, नाम से ही स्पष्ट है कि सांसों के साथ शरीर के बाहर प्रयोग करना। महत्वपूर्ण बात यह है कि सांसों को अंदर रोकें या बाहर लाभ सम्पूर्ण शरीर के बाहरी एवं अंदरूनी भागों पर पड़ता है।
इस प्रक्रिया में तीन चरण मुख्य होते हैं, पूरक, रेचक एवं कुंभक। पूरक का अर्थ है सांस अंदर भरना एवं रेचक अर्थात सांस बाहर छोड़ना। प्राणायाम अभ्यास के दौरान सांस को अंदर रोक कर रखने की प्रक्रिया को आंतरिक कुंभक एवं बाहर रोककर रखने की प्रक्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इस प्रकार दूसरे शब्दों में इस बाह्य कुंभक भी कह सकते हैं।
कुण्डलिनी शक्ति जब मूलाधार चक्र से सांसों के माध्यम से ऊपर उठती है तो इस चमत्कारी शक्ति का शरीर के बाहर कैसे उपयोग कैसे करें, बाह्य प्राणायाम के माध्यम से जानें।आइए, अब देखते हैं कि बाह्य पप्राणायाम का सही तरीके से अभ्यास कैसे एवं कितनी बार करें।
How to do Bahya Pranayama in Hindi बाह्य प्राणायाम कैसे करें
बाह्य प्राणायाम का पूर्ण रूप से लाभ लेने के लिए Bahya Pranayama Steps का सही अभ्यास होना आवश्यक है। सही तरीके से अभ्यास के लिए नीचे दी गई विधि को ध्यान से पढ़ें।
१- शांत, हवादार एवं खुशनुमा माहौल में, सूर्योदय से पहले, योगा मैट अथवा चटाई बिछाकर उसपर बैठ जाएं।
२- बैठने के लिए सुखासन, पद्मासन अथवा अर्ध पद्मासन, जो आपको अधिक सुविधा जनक लगे, का प्रयोग कर सकते हैं।
३- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama के साथ ज्ञान मुद्रा अथवा वायु मुद्रा का अभ्यास भी किया जा सकता है। दोनों ही मुद्राएं विशेष लाभ देने वाली मुद्रा हैं।
४- आंखें बंद करें, लंबी गहरी सांसलें तथा जितनी देर संभव हो सांस को अंदर रोक रखें। फिर धीरे धीरे लयबद्ध तरीके से सांस को बाहर छोड़ दें।
५- पांच से सात बार सांसों का अभ्यास कर अपनी मनोदशा को सामान्य करें। इससे ध्यान भी वर्तमान में आ जाता है एवं शरीर प्राणायाम के लिए तैयार हो जाता है।
६- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama में तीन बातों का विशेष अभ्यास करना है जो निम्न हैं –
- जालंधर बंध: सिर को इस प्रकार नीचे झुकाएं कि आपकी ठोडी छाती को छूने लगे।
- उड्डयान बंध: पेट को जितना संभव हो उतना अंदर खींचकर पीठ से मिलाने की कोशिश करें।
- मूल बंध: मूलाधार चक्र के आस पास के सभी अंगों को अर्थात नाभि के नीचे के अंगों को अंदर लकी तरफ़ खींचकर रखें।
७- अब शरीर को पूर्ण रूप से सीधा रख, सांस भीतर लें। सांस बाहर छोड़ते समय पहले मूलबंध, फिर उड्डयान बांध तथा अंत में जालंधर बंध का प्रयोग करें।
८- सम्पूर्ण रूप से सांस छोड़ने अर्थात तीनों बंध का प्रयोग करने के बाद मन में एक से दस तक की गिनती तक सांस को बाहर रोककर रखें।
९- अब धीरे धीरे सांस अंदर लेते हुए पहले जालंधर बंद फिर उड्डयान बंध तथा अंत में मूल बंध को तोड़कर स्वांस अंदर भरें। स्वयं को सामान्य होने दें।
१०- इस प्रकार बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama का एक चक्र पूरा हुआ। कुछ देर विश्राम के बाद दोबारा इस प्रक्रिया को दोहराएं। शुरुआत में दो से तीन बार ही बाह्य प्राणायाम का अभ्यास करें।
Note: नियमित अभ्यास से समय सीमा बढ़ाना आसन हो जाएगा।
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Bahya Pranayam Benefits in Hindi बाह्य प्राणायाम के लाभ
जैसा कि अपने ऊपर पढ़ा बाह्य प्राणायाम मात्र आंतरिक नहीं बल्कि कई बाहरी लाभ भी देता है। आइए, विस्तार से इसके लाभों के बारे में जानें।
१- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama के अभ्यास से स्वसन् नलिका स्वच्छ होती है तथा सांसों संबंधी बीमारियां जैसे के अस्थमा इत्यादि से मुक्ति मिलती है।
२- हर्निया के रोगियों के लिए बाह्य प्राणायम अत्यंत लाभकारी है। इसके नियमित अभ्यास से मूत्र मार्ग के सभी रोग ठीक होने लगते हैं।
३- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama से मूलाधार चक्र सक्रिय एवं संतुलित होता है तथा कब्ज़, बवासीर अथवा फिशर आदि से मुक्ति मिलती है।
४- पाचन तंत्र तथा पेट के आसपास के अंगों में रक्त संचार बढ़ने से इनकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है। फलस्वरूप भोजन पचाने में आसानी हो जाती है तथा गैस की समस्या से भी निजात मिलती है।
५- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama के नियमित अभ्यास से सातों चक्र खासकर नाभि चक्र पर विशेष प्रभाव पड़ता है। परिणाम स्वरूप व्यक्ति भावनात्मक रूप से मजबूत बनने लगता है।
६- पाचन प्रक्रिया सामान्य होने के फलस्वरूप कई बीमारियों जैसे कि मधुमेह, उच्च एवं निम्न रक्तचाप, पथरी, गुर्दा एवं गर्भाशय संबंधी बीमारियों से बचाव होता है। जिन्हे पहले से कोई बीमारी है उनको मुक्ति मिलती है।
७- बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayama का नियमित शरीर से अतिरिक्त वसा को निकालकर बाहर फेंकने तथा पर कमर एवं शरीर के बनी भागों से चर्बी खत्म कर मोटापा कम करने में मदद करता है।
८- गले संबंधी रोगों से मुक्ति मिलने के साथ विशुद्ध चक्र संतुलित होता है। विचारों एवं बातों में स्पष्टता बढ़ने लगती है। छाती के सभी विकार दूर होते हैं।
९- कुण्डलिनी जागृत होने के साथ औरा को साफ़ कर मजबूत औरशक्तिशाली बनाकर अपने आस पास सकारात्मक तथा मजबूत औरा बनाने में मदद मिलती है। औरा ना सिर्फ़ रोगों से बल्कि नज़र दोष एवं अन्य नकारात्मक ऊर्जा सेबचाने में मदद करता है।
१०- बाह्य Bahya Pranayama मुद्रा के नियमित अभ्यास से पूर्ण कुण्डलिनी जागृति में मदद मिलती है। एकाग्रता
तथा स्मृति में भी वृद्धि होती है।
११- बाह्य प्राणायम Bahya Pranayama का अभ्यास, शरीर, मन, मस्तिष्क को स्वस्थ एवं मजबूत बनाकर शरीर को, जोड़ों को, मेरुदंड को लचीला एवं शक्तिशाली बनाता है।
Bahya Pranayam Precautions/ Side Effects of Bahya Pranayam/ सावधानियां
बाह्य प्राणायाम जितनी अधिक शक्तियां प्रदान करता है उतने ही बातों को ध्यान में रखकर ही इस प्राणायाम का अभ्यास शुरू करें।
१- रक्तचाप के रोगी, उच्च अथवा निम्न, चिकित्सक की सलाह लेकर तथा योग्य शिक्षक की निगरानी में ही इसका Bahya Pranayama अभ्यास शुरू करें।
२- महिलाएं मासिक धर्म तथागर्भवास्था के दौरान बाह्य प्राणायाम का अभ्यास बिल्कुल ना करें।
३- हृदय रोग अथवा सांसों संबंधी किसी गंभीर समस्या से पीड़ित चिकित्सक की सलाह ले बिना इसका अभ्यास ना करें।
४- खाने के कम से कम चार से छह घंटे बाद ही अर्थात बिल्कुल खाली पेट इस प्राणायाम का अभ्यास करें। बाह्य प्राणायाम अभ्यास के लिए सर्वश्रेष्ठ समय सुबह नित्य कर्म से फारिग होने के बाद का है।
५- शुरुआती दिनों में दस सेकंड से इस Bahya Pranayama प्राणायाम का अभ्यास शुरू करें, अथवा जितनी देर आसानी से सांस को बाहर रोक सकते हैं उतनी ही देर रोकें। अपने शरीर के साथ किसी भी प्रकार की ज़ोर जबरदस्ती ना करें।
६- बेहतर होगा कि बाह्य प्राणायम Bahya Pranayama का अभ्यास किसी योग्य शिक्षक की निगरानी से शुरू करें। सीखने के बाद आप इसे अपने समयनुसार घर पर ही कर सकते हैं।
Final Words: बाह्य प्राणायम Bahya Pranayama अन्य आंतरिक योग अथवा प्राणायाम की भांति ही सांसों के माध्यम से जीवन को संतुलित करने का एक बेहतरीन माध्यम है। अपने व्यस्त दिनचर्या में से कुछ मिनट निकलकर योगासनों, ध्यान, मुद्राओं एवं प्राणायाम का अभ्यास रोग रहित, सुखी एवं शांत जीवन प्रदान करता है।
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भवतु सब्बै मंगलम!